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कविता

गीत स्वयं बन जाएँगे हम

कमलेश द्विवेदी


गाते हैं हम गाएँगे हम मन की तान सुनाएँगे हम।
हर दिल में गूँजेंगे ऐसे गीत स्वयं बन जाएँगे हम।

हमको जोर दिखा सकते हो।
बादल बनकर छा सकते हो।
हमको पूरा-पूरा ढककर,
दुनिया को भरमा सकते हो।
पर तुम कितनी देर टिकोगे चमकेंगे-चमकाएँगे हम।

हमको आहत कर सकते हो।
नाजुक पंख कतर सकते हो।
पिंजरे में भी रखकर शायद,
थोड़ी दहशत भर सकते हो।
पर जब तक साँसों में साँसें चहकेंगे-चहकाएँगे हम।

हमको तोड़-मसल सकते हो।
पैरों तले कुचल सकते हो।
हमसे ज्यादा ताकतवर हो,
जैसे चाहो दल सकते हो।
पर कैसे छीनोगे खुशबू महकेंगे-महकाएँगे हम। 


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